विकाश कुमार गुप्ता: हर ज़रूरत मंद का सहारा,झारखंड का वो बेटा जो बन गया 'मसीहा'
झारखंड के बेरमो की गलियों में, एक नाम हर किसी की जुबान पर है - विकास कुमार गुप्ता । वह कोई राजनेता नहीं है, न ही कोई बड़ा अधिकारी।
वह तो बस एक साधारण इंसान है, जिसके दिल में लोगों के लिए बेपनाह प्यार है। जब कोरोना की लहर ने देश को अपनी चपेट में लिया, तो विकास के लिए यह आपदा नहीं, बल्कि एक चुनौती थी। उसने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, ताकि उसके गांव का कोई भी इंसान भूखा न सोए। वह दिन-रात एक करके राशन के पैकेट, दवाइयां और मास्क घर-घर पहुँचाता था। लोग उसे देखकर खुश हो जाते थे और उसकी दुआएं ही विकास की सबसे बड़ी कमाई थीं। विकास का असली हुनर लोगों की आवाज को सही जगह पहुँचाने में था। उसके पास एक स्मार्टफोन था और वह उसका इस्तेमाल समाज की भलाई के लिए करता था। ट्विटर पर उसने एक अकाउंट बनाया और वहीं से उसकी नई पहचान की शुरुआत हुई। लोग उसे अपनी समस्याएं बताते थे, और वह उन्हें ट्वीट करके अधिकारियों तक पहुँचाता था। जल्द ही, वह 'ट्विटर एक्टिविस्ट' के नाम से जाना जाने लगा।
एक दिन, उसकी नजर एक छोटे से बच्चे पर पड़ी, जिसके दिल में छेद था। बच्चे के माता-पिता के पास इलाज के लिए पैसे नहीं थे। विकास ने बिना देर किए अपने आदर्श, अभिनेता सोनू सूद, से संपर्क किया। एक ट्वीट और कुछ फोन कॉल्स के बाद, सोनू सूद ने बच्चे की सर्जरी का सारा इंतजाम कर दिया। यह सिर्फ एक जान बचाने की कहानी नहीं थी, बल्कि यह इस बात का सबूत था कि इंसानियत अभी भी जिंदा है।
विकास का काम सिर्फ महामारी तक ही सीमित नहीं रहा। उसने बुजुर्गों को पेंशन दिलवाने में मदद की, दिव्यांगों को ट्राईसाइकिल दी और शिक्षा से वंचित बच्चों को स्कूल भेजने का बीड़ा उठाया। उसकी निस्वार्थ सेवा ने लोगों का दिल जीत लिया। एक इटालियन पत्रिका ने तो उसे 'झारखंड का सोनू सूद' तक कह डाला।
विकास के लिए यह केवल एक उपाधि नहीं थी, बल्कि हजारों लोगों के दिलों में उसके लिए सम्मान का प्रतीक बन गई। उसने साबित कर दिया कि एक इंसान अपनी कोशिशों से कितना बड़ा बदलाव ला सकता है। उसकी कहानी बताती है कि तकनीक सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि जरूरतमंदों की आवाज बनकर, एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए है।
विकास का काम सिर्फ महामारी तक ही सीमित नहीं रहा। उसने बुजुर्गों को पेंशन दिलवाने में मदद की, दिव्यांगों को ट्राईसाइकिल दी और शिक्षा से वंचित बच्चों को स्कूल भेजने का बीड़ा उठाया। उसकी निस्वार्थ सेवा ने लोगों का दिल जीत लिया। एक इटालियन पत्रिका ने तो उसे 'झारखंड का सोनू सूद' तक कह डाला।
विकास के लिए यह केवल एक उपाधि नहीं थी, बल्कि हजारों लोगों के दिलों में उसके लिए सम्मान का प्रतीक बन गई। उसने साबित कर दिया कि एक इंसान अपनी कोशिशों से कितना बड़ा बदलाव ला सकता है। उसकी कहानी बताती है कि तकनीक सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि जरूरतमंदों की आवाज बनकर, एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए है।
✍️ आर्टिस्ट सौरभ प्रामाणिक
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