जब रंग बने खिलौने: सौरभ की कला के प्रति बचपन का जुनून
चैनपुर की शांत गलियों से निकलकर, सौरभ प्रामाणिक नामक एक युवा कलाकार अपनी कूची से सपनों की दुनिया रच रहा है। चांडिल प्रखंड के चैनपुर नामक छोटे से गाँव में जन्मे सौरभ की रंगों से दोस्ती बचपन से ही अटूट रही है। उनके पिता, किरिटि प्रामाणिक, जिन्हें प्यार से बिल्लू कहा जाता है और जो स्वयं एक कुशल चित्रकार हैं, ने अनजाने में ही अपने बेटे के भीतर कला के उस बीज को अंकुरित कर दिया था जो अब एक विशाल वृक्ष बनने की ओर अग्रसर है। बचपन के दिनों में, जब अन्य बच्चे रंगीन खिलौनों की दुनिया में खोए रहते थे, सौरभ के लिए रंग ही उनके सबसे प्रिय साथी थे।
प्रकृति के प्रति उनका गहरा आकर्षण उन्हें सहज ही नैसर्गिक दृश्यों की ओर खींच लेता था। वे घंटों पेड़ों की पत्तियों के हरे रंग, नदियों के निर्मल नीलेपन और आकाश के बदलते हुए अनगिनत रंगों को निहारते रहते थे। उनकी युवा आँखें इन दृश्यों को सोख लेती थीं, और उनका मन उन्हें अपनी कल्पना के कैनवास पर उतारने के लिए बेचैन रहता था। प्रकृति उनकी पहली पाठशाला थी, जहाँ उन्होंने रंगों के अनगिनत रूपों और उनके सूक्ष्म बदलावों का गहराई से अध्ययन किया।
सौरभ की असाधारण प्रतिभा गाँव की सीमाओं से बाहर निकलने में देर नहीं लगी। अपनी अटूट लगन और कला के प्रति गहरे समर्पण के बल पर, उन्होंने कई स्थानीय चित्रांकन प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त किया। प्रत्येक जीत उनके आत्मविश्वास को और अधिक दृढ़ करती गई, उनके भीतर के कलाकार को एक नई उड़ान भरने के लिए प्रेरित करती रही। उनके माता-पिता ने उनकी इस विशिष्ट प्रतिभा को पहचाना और उन्हें सही मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए जमशेदपुर के प्रतिष्ठित टैगोर स्कूल ऑफ आर्ट्स में दाखिला दिलाया। यह उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जहाँ सौरभ ने कला के विभिन्न आयामों को गहराई से समझा और अपनी नींव को और मजबूत किया।


वर्तमान में, सौरभ प्रामाणिक आदित्यपुर स्थित श्रीनाथ यूनिवर्सिटी के फाइन आर्ट विभाग के एक समर्पित छात्र हैं, जहाँ वे कला के विशाल सागर में और गहराई तक गोते लगा रहे हैं। उनका औपचारिक अध्ययन भले ही अभी जारी है, लेकिन उनकी कला पहले ही अपनी एक विशिष्ट पहचान बना चुकी है।

वर्ष 2021 सौरभ के कलात्मक जीवन में एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुआ जब उन्होंने "त्रिनेत्र" नामक एक प्रभावशाली श्रृंखला बनाई। इस श्रृंखला ने न केवल उनकी रचनात्मकता की गहराई को दर्शाया, बल्कि उनकी गहरी सोच और समाज को देखने के उनके अनूठे नजरिए का भी परिचय दिया।
उनकी पेंटिंग मात्र रंगों और रेखाओं का एक सुंदर संयोजन नहीं हैं; वे उस वास्तविकता को चित्रित करती हैं जिसे अक्सर समाज की व्यस्त आँखें अनदेखा कर देती हैं। उनकी कला दर्शकों को उस सत्य की ओर देखने के लिए प्रेरित करती है जो सतही दृश्यों से कहीं परे है, जो अक्सर अनकहा और अनसुना रह जाता है। सौरभ की कला में पारंपरिक रियलिज्म का महत्व गौण है। उनका मानना है कि जो कुछ भी हम अपनी आँखों से देखते हैं, वह हमेशा संपूर्ण सत्य नहीं होता। उनकी कूची वास्तविकता की ऊपरी परतों को धीरे-धीरे उधेड़ती है और हमें उन अनदेखे पहलुओं पर गहराई से विचार करने के लिए विवश करती है जो अक्सर हमारी भागती-दौड़ती और सतही दुनिया में छूट जाते हैं। उनकी कला एक मौन आह्वान है, एक निमंत्रण है कि हम अपनी धारणाओं पर सवाल उठाएं और दुनिया को एक नए दृष्टिकोण से देखें। अपने काम में सामाजिक मुद्दों को भी उठाते हैं, जिससे उनकी कला केवल सौंदर्य तक सीमित नहीं रहती बल्कि विचारशीलता को भी प्रेरित करती है।
सौरभ प्रामाणिक की कहानी केवल एक कलाकार की कहानी नहीं है; यह एक प्रेरणा है। यह दर्शाती है कि कैसे एक छोटे से गाँव का एक साधारण लड़का, जिसके पास केवल अपने जुनून और अटूट समर्पण की शक्ति है, कला के विशाल क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना सकता है। उनकी यात्रा हमें यह महत्वपूर्ण सबक सिखाती है कि सच्ची कला केवल देखने वाली आँखों को ही नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई को भी स्पर्श करती है, और हमें दुनिया को एक बिल्कुल नए, अधिक संवेदनशील और विचारशील दृष्टिकोण से देखने के लिए प्रेरित करती है। सौरभ का कलात्मक सफर अभी भी जारी है, और हम निश्चित रूप से उम्मीद कर सकते हैं कि उनकी कूची से भविष्य में और भी अद्भुत रचनाएँ सामने आएंगी, जो हमें सोचने, महसूस करने और इस दुनिया को एक अलग नजर से देखने पर मजबूर करेंगी। उनकी कला एक प्रकाश स्तंभ की तरह है, जो हमें याद दिलाती है कि सौंदर्य और सत्य अक्सर सबसे अप्रत्याशित स्थानों में छिपे होते हैं, बस उन्हें देखने के लिए एक संवेदनशील हृदय और एक खुली हुई मानसिकता की आवश्यकता होती है।
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